गालों की हडि्डयों में दर्द और नाक के अंदरूनी हिस्से में जलन को साइनोसाइटिस कहा जाता है। नाक के अंदर के हिस्से एक झिल्ली से ढके होते हैं। ठंड के समय नाक बंद हो जाती है, जिससे सिर में दर्द और भारीपन सा लगने लगता है। साथ ही गालों की हडि्डयों एवं माथे पर सूजन भी आ जाती है। दवाइयां लेने के बावजूद लगभग एक सप्ताह का समय इससे निपटने में लगता है। इनसे जल्दी निपटने के लिए योग के कुछ आसन आप आजमा सकते हैं, जिसके जरिए आप दवाइयों से भी छुटकारा पा सकते हैं

ये आसन हैं, सूर्य नमस्कार, शवासन, धनुरासन, अर्धमत्स्येंद्रासन और हलासन। इन सारे आसनों का अभ्यास, क्षमता के अनुसार दिन में एक से तीन बार तक किया जा सकता है। सूर्य नमस्कार तो आप सब जानते ही हैं, आइए बाकी आसनों को कैसे करना है ये जान लें।
धनुरासन- पेट के बल लेट जाइए। दोनों पैरों को घुटने से पीठ की तरफ मोड़िए, दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपने पैर के टखनों को पकड़िए। धीरे-धीरे पीछे की तरफ गर्दन ऊपर उठाते हुए शरीर को तान दीजिए, आप धनुष जैसी पोजीशन में आ जाएंगे। थोड़ी देर इसी स्थिति में रुकिए और फिर पूर्वावस्था में धीरे-धीरे लौट आइए। सांस की स्थिति सामान्य हो जाने पर इस क्रिया को फिर से दोहराइए। कम से कम तीन बार इसे दोहराएं। इस आसन के जरिए कमर के दर्द में भी आराम मिलता है और नाभि भी सेंटर प्वॉइंट पर बनी रहती है।
अर्ध मत्स्येंद्रासन- सामने की ओर पैर फैलाकर बैठ जाइये। दाहिने पैर को सीधा जमीन पर बाएं घुटने के बाहर की ओर रखिए। बाएं पैर को दाहिने ओर मोड़िये। एड़ी दाहिने नितंब के पास रहे। बाएं हाथ को दाहिने पैर के बाहर की ओर रखिए और दाहिने पैर या टखने को पकड़िए। दाहिना घुटना बाईं भुजा के अधिक से अधिक समीप रहे। दाहिना हाथ पीछे की ओर रखिए। शरीर को दाहिने ओर मोड़िए। गर्दन और पीठ को अधिक से अधिक मोड़ने का प्रयास कीजिए। कुछ देर इस अवस्था में रहकर धीरे-धीरे पहले वाली पोजीशन में आ जाइए। थोड़ी देर बाद यही क्रिया अपोजिट साइड में कीजिए।

हलासन- पीठ के बल लेट जाइए। हाथ नितंबों के बगल में तथा हथेलियां ऊपर की ओर खुली रहें। पैरों को सीधी पोजीशन में धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाइए। उन्हें उठाते समय हाथों पर बल न डालकर पेट की मांसपेशियों पर जोर दें। पैरों को सिर के पीछे ले जाकर अंगूठे को जमीन पर रखिए। हाथों को कमर पर रखिए। पैरों को कुछ और पीछे ले जाइए ताकि शरीर एकदम तन जाए। इस पोजीशन को जालंधर बंध यानी नेक लॉक कहते हैं। धीरे-धीरे पहले की पोजीशन में वापस आ जाइए।
भस्त्रिका प्राणायाम – ध्यान के किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जाइए। सिर और रीढ़ की हड्डी सीधे रखें। आंखें बंद रहे। शरीर को रिलेक्स दीजिए। दोनों हाथों को घुटनों पर रखिए। नाक के दोनों छिद्रों से एक साथ तेजी से सांस भरिए और छोड़िए। ऐसा लगातार दस बार कीजिए। उसके बाद पूरा शरीर फिर से रिलेक्स मोड में ले आइए। इस श्वसन क्रिया को 10 मिनट तक करना चाहिए।
षट क्रियाएं-ये सर्वाधिक लाभदायक होती है। इससे कफ रिलीज करने में काफी आसानी होती है। साइनस की सफाई होती है। इसके लिए एक टोंटी लगा हुआ लोटा लें। लोटे में गुनगुना पानी भरिए, जितना आप सहन कर सकें। प्रति आधा लीटर पानी में एक चाय का चम्मच भर नमक मिलाएं। पानी में नमक पूरी तरह से घोल लीजिए, लोटे की टोंटी को धीरे से नाक के बाएं छेद से लगाइए। सिर को धीरे-धीरे थोड़ा सा दाहिने ओर झुकाइए। साथ ही इस लोटे को इस तरह से ऊपर उठाइए कि पानी सीधे नाक के बाएं छेद में ही हो। मुंह को पूरी तरह से खुला रखिए ताकि नाक के बदले सांस मुंह से ली जा सके। जल का प्रवाह नाक के बाएं छेद से अंदर जाकर दाएं छेद से बाहर आ जाएगा। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से होगी। लोटे की पोजीशन और सर का झुकाव सही हो और सांस मुंह से ली जाए। लगभग 20 सेकेंड तक इसे करिए, अब लोटा हटा लीजिए। भस्त्रिका प्राणायाम की तरह तेजी से सांस लेकर नाक को अच्छे से साफ कीजिए। सांस छोड़ने की गति बहुत तेज न हो, नहीं तो दिक्कत हो सकती है। अब दूसरी तरफ से भी इसी क्रिया को दोहराइए।
सलाह–
1-प्रतिदिन योग निद्रा का अभ्यास करना चाहिए। इससे काफी आराम मिलता है।
2-भोजन हल्का और शाकाहारी होना चाहिए। तैलीय और मीठा खाना कम से कम किया जाए।
3-साइनोसाइट्स से परेशान हों तो शीर्षासन एवं सर्वांगासन नही किया जाता है। क्योंकि वो और बढ़ सकता है।
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