मोटापा एक ऐसी समस्या है जो धीरे-धीरे एक बड़ी आबादी को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। ये एक ऐसी समस्या है जो कई गंभीर बीमारियों को अपने साथ लेकर आती है। इनमें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अर्थराइटिस जैसे रोग आते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में तेजस्विता की कमी, मानसिक-शारीरिक सुस्ती और डिप्रेशन जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं।

मोटापे का सबसे प्रमुख कारण अति आहार (अधिक मात्रा में खाना) है। लेकिन समस्या केवल अधिक मात्रा में भोजन करने की नहीं है बल्कि गलत तरीके से भोजन करने की भी है। अधिक मात्रा में वसा, मसाले, शर्करा युक्त भोजन, मिठाइयां और परिष्कृत आहार से शरीर के वजन में बढ़ोत्तरी होती है। जबकि ऐसा आहार जिसमें अनाज, फल एवं सब्जियों की बहुलता हो, व्यक्ति के शरीर के भार को संतुलित रखता है और सर्वोत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करता है।
कपालभाती: जमीन पर पदमासन या सुखासन की अवस्था में बैठें। फिर पूरे दम से नाक से सांस छोड़ें पर सांस लेने का अतिरिक्त कोई प्रयास न करें। सांस खुद आ जाएगी। सांस छोड़ते समय पेट अंदर करें। पहले धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें। फिर इस क्रिया की गति धीरे-धीरे बढ़ा दें। शुरू-शुरू में नए अभ्यासी कम से कम 20 चक्रों का अभ्यास करें। एक सप्ताह के बाद 50 चक्रों तक अभ्यास बढ़ा दें। ध्यान रहे इस दौरान कमर और गर्दन सीधी रहे और आंखें बंद हों। हाथ ज्ञान की मुद्रा में रहने चाहिए।
अग्निसारः पहले पदमासन में बैठ जाइए। दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखिए लेकिन हाथ सीधे रहने चाहिए। नाक से गहरी सांस लीजिए फिर इसके बाद सांस निकालकर जाल-धार बंद लगाइए। तेजी से उदर स्नायुओं का विस्तार एवं संकुचन कीजिए यानि पेट को अंदर-बाहर तेजी से कीजिए। प्रारंभ में क्षमता के अनुसार अभ्यास कीजिए। फिर धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाते जाइए।
पश्चिमोत्तानासनः हथेलियों को जांघों पर रखते हुये पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाइए। शरीर को धीरे धीरे आगे की ओर झुकाइए। पैरों के अंगूठों को पकड़ने का प्रयास कीजिए। यदि संभव न हो तो टखनों को पकड़िए। माथे से घुटनों को स्पर्श करने का प्रयत्न कीजिए। नए अभ्यासी शुरू में केवल उतना झुकें जितना वो आराम से झुक सकते हैं। शरीर पर जोर न दें। अंतिम स्थिति में जितनी देर आसानी से रह सकें, रहिये फिर शरीर को ढीला करते हुए पहले की स्थिति में लौट आइए।
भस्त्रिका प्राणायामः ध्यान के किसी सुखप्रद आसन में बैठ जाइए। सिर एवं रीढ़ की हड्डी सीधे रखिए। आंख बंद कर लीजिए। शरीर को ढीला छोड़िए। दोनों हाथों को घुटने पर रखिए। नाक के दोनों छिद्रों से एक साथ तेजी से सांस लीजिए और एक साथ ही छोड़िए। लगातार 10 बार ऐसा कीजिए। उसके बाद पूरे शरीर को ढीला छोड़ दीजिए। फिर से इस क्रिया को कीजिए। करीब 10 मिनट ऐसा करें।
कुंजल (षटकर्म): सीधे खड़े हो जाइए। अब 6 गिलास नमकीन गुनगुना पानी लीजिए और जितनी जल्दी हो सके पी लीजिए।अब आगे की तरफ झुकिए फिर दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगली को गले में अधिक से अधिक अंदर डालिए। नाखून छोटे और साफ हों। जीभ के पिछले भाग से मध्यमा उंगली से दबाव डालें। इससे वमन होगा और पेट का संपूर्ण जल तेज बहाव के साथ बाहर आ जाएगा। जल के पूर्णत: निकलने तक जीभ पर दबाव डाले रहिए। इसको करने के लिए ध्यान रखना चाहिए कि ये खाली पेट करें और करने के बाद 20 मिनट तक कुछ न खाएं।
शिथिलीकरणः योगनिद्रा का अभ्यास प्रतिदिन आवश्यक है। इसमें नकारात्मक संकल्प नहीं लेने चाहिए। क्योंकि इससे हो सकता है कि अतिआहार की आदत और बढ़ जाए। पूरा शरीर जमीन पर ढीला छोड़ दें। पूरा ध्यान सांस लेने और छोड़ने पर बना रहे।
आहारः मोटे व्यक्तियों को उपवास करने का सुझाव नहीं दिया जा सकता। इन लोगों के लिए उपवास के एक सुनिश्चित कार्यक्रम को अपनाना बहुत कठिन होता है। उपवास खत्म करने पर ये पहले से अधिक खाना खा लेते हैं। इसलिए इनको पौष्टिकता से परिपूर्ण और सादा भोजन निश्चित समय पर लेना चाहिए। सुबह शाम के भोजन के अलावा दिन में कुछ नहीं खाना चाहिए। साबुत अनाज, फल और हरी सब्जियां ही भोजन में लें।
सावधानी: कपालभाती, कुंजल, भस्त्रिका, पश्चिमोत्तासन, अग्निसार योग उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, पेट या आमाशय में नासूर हो जाने पर नहीं करने चाहिए।
Source: ibnlive
कृपया इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने परिवार और मित्रों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करें!