
योग के आठों अंगों में प्राणायाम सबसे प्रमुख अंग है। प्राण को विकसित करने वाली प्रणाली का नाम ही ‘प्राणायाम’ होता है। मानव का अस्तित्व इसी प्राण के कारण होता है। इसके बिना हम जीवित रहने की कल्पना तक नहीं कर सकते।
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जब हम स्वाभाविक रूप से श्वास लेते हैं तो वह जीवनी शक्ति को सामान्य तो बनाए रखती है परन्तु वह उसे विकसित नहीं कर पाती। जब हम अस्वाभाविक रूप से या जल्दी-जल्दी या अधूरी श्वास लेते हैं तो हमारी जीवनी शक्ति क्षीण होती है, साथ ही मुंह से या नाक से अशुद्ध वायु को भी ग्रहण करते रहते हैं जो शरीर पर काफी बुरा प्रभाव डालती है।
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जब बच्चा जन्म लेता है तो वह श्वास लेने की पद्धति को जानता है क्योंकि उसे प्रकृति मदद करती है।