थायरॉयड की समस्या आज के समय में आम हो गई है, खासतौर पर गर्भवती महिलाओं में। गर्भावस्थआ के समय थायरॉयड की समस्या के गंभीर होने पर आपको और शिशु दोनों को खतरा हो सकता है। लेकिन थायरॉयड की समस्या से बचना संभव है। आइये जानें प्रेग्नेंसी में थायरॉयड की समस्या क्या है।

- थायरॉयड पाचनक्रिया पर खासा असर डालता है। थायरॉयड बीमारी के दौरान पाचनक्रिया सामान्य से 50 फीसदी कम हो जाती है। इतना ही नहीं थायरॉयड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोंस की अधिकता के कारण पाचनक्रिया पर असर पड़ता है,जो कि बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के साथ ही गर्भावस्था के दौरान खतरनाक स्थिति भी पैदा कर सकता है।
- ऐसा नहीं कि थायरॉयड का इलाज नहीं लेकिन थायरॉयड से निजात पाने के लिए उसका सही इलाज जरूरी है, इसलिए गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान हर महीने थायरॉयड की जांच करवानी चाहिए।
- गर्भावस्था के दौरान थायरॉयड के इलाज के लिए दी जाने वाली डोज जरूरत के हिसाब से घटाई या बढ़ाई भी जा सकती हैं। जिससे होने वाले बच्चे को किसी भी नुकसान से बचाया जा सकें।
- आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान थायरॉयड के इलाज में दवाओं के डोज बढ़ा दिए जाते हैं लेकिन बच्चे के जन्म के बाद इसे जरूरत के हिसाब से कम कर दिया जाता है।
- गंभीर थायरॉयड होने यानी हाइपोथायरॉयड होने से गर्भपात की संभावना बढ़ जाती हैं। इतना ही नहीं भ्रूण के गर्भ में ही मृत्यु होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
- थायरॉयड के कारण बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर बहुत प्रभाव पड़ता है, बच्चा असमान्य भी हो सकता है। बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में भी समस्या आती हैं।
- थायरॉयड पीडि़त प्रेग्नेंट महिलाओं के बच्चों का विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं होता बल्कि धीमी गति से होता है।
- थायरॉयड पीडि़त प्रेग्नेंट महिलाओं के बच्चों को यानी नवजात शिशुओं का नियोनेटल हाइपोथायरॉयड की समस्या हो सकती हैं।
गर्भवती महिलाओं को थायरॉयड का पता लगते ही उन्हें तुरंत इलाज शुरू कर देना चाहिए। डॉक्टर के सलाहानुसार समय-समय पर लगातार जांच करानी चाहिए और नियमित रूप से दवाओं का सेवन करना चाहिए जिससे होने वाले बच्चे पर थायरॉयड का कोई खास प्रभाव न पड़े और गर्भवती महिला भी सुरक्षित रहें।
Source: onlymyhealth
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