
मिर्गी रोग : सरल उपचार
मिर्गी एक नाडीमंडल संबंधित रोग है जिसमें मस्तिष्क की विद्युतीय प्रक्रिया में व्यवधान पडने से शरीर के अंगों में आक्षेप आने लगते हैं। दौरा पडने के दौरान ज्यादातर रोगी बेहोंश हो जाते हैं और आंखों की पुतलियां उलट जाती हैं। रोगी चेतना विहीन हो जाता है और शरीर के अंगों में झटके आने शुरू हो जाते हैं। मुंह में झाग आना मिर्गी का प्रमुख लक्षण है !
दुनिया भर में पांच करोड़ से ज्यादा लोग मिर्गी के शिकार हैं और यह समस्या लगातार बढ़ रही है। भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में मिर्गी की बीमारी आम है। शायद यही कारण है कि इस बार ′वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी′ ने ′विश्व मस्तिष्क दिवस′ पर मिर्गी को थीम बनाया है। यह रोग दिमाग में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी (विद्युत प्रवाह) की गड़बड़ी के कारण होता है।
मिर्गी आने का कारण जेनेटिक होने के अलावा सिर में चोट लगना, इन्फेक्शन, ट्यूमर, कोई सदमा, मानसिक तनाव, स्ट्रोक आदि हो सकता है।
यदि किसी बच्चे को मिर्गी की शिकायत है, तो कोई मानसिक कमी भी इसका कारण हो सकती है। आमतौर पर मिर्गी आने पर रोगी बेहोश हो जाता है। यह बेहोशी चंद सेकेंड, मिनट या घंटों तक हो सकती है। दौरा समाप्त होते ही मरीज सामान्य हो जाता है।
यदि किसी की बेहोशी दो-तीन मिनट से ज्यादा है, तो यह जानलेवा भी हो सकती है। उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए । कुछ लोग मिर्गी आने पर रोगी को जूता, प्याज आदि सुंघाते हैं, इसका मिर्गी के इलाज से कोई संबंध नहीं है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में मिर्गी की लाक्षणिक चिकित्सा की जाती है और जीवन पर्यंत दवा-गोली पर निर्भर रहना पडता है। लेकिन रोगी की जीवन शैली में बदलाव करने से इस रोग पर काफ़ी हद तक काबू पाया जा सकता है।
कुछ निर्देश और हिदायतों का पालन करना मिर्गी रोगी और उसके परिवार जनों के लिये परम आवश्यक है। शांत और आराम दायक वातावरण में रहते हुए नियंत्रित भोजन व्यवस्था अपनाना बहुत जरूरी है। भोजन भर पेट लेने से बचना चाहिये। थोडा भोजन कई बार ले सकते हैं। रोगी को सप्ताह मे एक दिन सिर्फ़ फ़लों का आहार लेना उत्तम है। थोडा व्यायाम करना भी जीवन शैली का भाग होना चाहिये।
Source: gyanpanti
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