
नेब्रस्का लिंकन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता एलिसा-लिंकन और टीमोथी डी नेल्सन का कहना है कि डॉक्टरों को नींद और खाने के प्रति जागरूक होना चाहिए। नींद सक्रिय रूप से आहार-व्यवहार को बदल देती है। इस पर विचार किया जाना चाहिए। मोटापे से मधुमेह, ह्वदय रोग जैसी घातक बीमारी होने का खतरा बना रहता है। दूसरी ओर, इस बारे में लेखक का कहना है कि अत्यधिक भोजन करना व बाधित नींद को समझना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
भोजन का सेवन जैविक, संज्ञात्मक, भावनात्मक और पर्यावरणीय कारकों से प्रेरित है। इसमें लुंथल और नेल्सन का तर्क है कि इन कारकों से सोने की प्रवृत्ति प्रभावित है। नींद प्रभावित होने के चलते वयस्कों और बच्चों दोनों का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। इसलिए आवश्यक है कि लोग इसके लिए जागरूक हों, उन्हें खाने की गुणवत्ता और मात्रा का भी ख्याल रखना चाहिए। यह शोधपत्र एक समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है।
Source: zeenews
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