देर से शादी देश में बांझपन की बड़ी वजह बनती जा रही है। महिलाओं द्वारा खुद के पैर पर खड़ा होना, आर्थिक संबल और कामकाजी होने की वजह से अब महिलाएं 30 वर्ष की उम्र के बाद शादी को प्राथमिकता देने लगी हैं, जिससे उनके लिए कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं। मेरा तो स्पष्ट मानना है कि यदि कोई महिला 35 वर्ष से ऊपर है तो उन्हें शादी के तुरंत बाद बच्चा प्लान कर लेना चाहिए। यदि छह महीने तक बच्चा नहीं हो रहा है तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए। आईवीएफ की सफलता में भी उम्र बड़ी भूमिका अदा करती है।

गर्भधारण का सही समय 25 से 30 वर्ष के बीच है
डॉ. रेणु मिश्रा के अनुसार करियर बनाने और पढ़ाई के चलते ज्यादातर युवतियॉं लेट मैरिज पसंद करती हैं। लेट शादी होने से प्रेग्नेंसी में भी देरी होती है, जिससे महिला और बच्चों दोनों को कई समस्याएँ होती है। प्रेग्नेंसी की सही उम्र 25 से 30 वर्ष है। इसके उपरान्त गर्भधारण होने से बच्चा होने के बाद माँ के शरीर को संभलने में काफी समय लगता है। शादी की उम्र 35 साल से बढ़ा दिया जाए तो बच्चा होने की संभावना 60 प्रतिशत कम हो जाती है। मेरा तो मानना है कि पहला बच्चा हर हाल में 25 से 30 वर्ष के बीच हो जाना चाहिए।
अंडाणु-शुक्राणु कमजोर, बच्चे पैदा करने में समस्या
डॉ. रेणु मिश्रा बताती हैं, लेट मैरिज की वजह से पुरुषों की प्रजनन शक्ति या कहें शुक्राणु कमजोर पड़ने लगते हैं और उसमें गति भी नहीं रह जाती है। यही नहीं, अधिक उम्र होने पर पुरुषों में शुक्राणुओं के बनने की संख्या भी कम होने लगती है। जिससे गर्भ ठहरने में बाधा और कमजोर बच्चों की पैदाइश एक बड़ी समस्या हैा इसे हर हाल में याद रखने की जरूरत है कि उम्र बढने के साथ-साथ पुरुषों के शुक्राणु व महिला के अंडे की गुणवत्ता कमजोर होती चली जाती है।
बांझपन की समस्या
डॉ. रेणु मिश्रा के मुताबिक शादी की उम्र ज्यों-ज्यों बढ़ती चली जाती है, त्यों-त्यों प्रजनन की खिड़की बंद होती चली जाती है। आधुनिक जीवनशैली, तनाव और प्रदूषण की वजह से प्रजनन शक्ति पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है। महानगरों में तो हर तीन या चार में से एक दंपत्ति में प्रजनन की समस्या देखने को मिल रही है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है त्यों-त्यों बच्चे पैदा होने की संभावना घटती चली जाती है। अधिक उम्र में शादी बांझपन का बहुत बड़ा खतरा बन कर सामने आ रही है। इससे गर्भ में ठहरे बच्चे में जीन संबंधी विकृतियाँ ज्यादा होने लगी हैं। साथ ही लेट मैरिज के बाद गर्भ में ठहरे बच्चे के गिरने का खतरा भी बहुत अधिक रहता है।
बच्चेदानी में टयूमर का भी खतरा
डॉ. रेणु मिश्रा बताती हैं कि उम्र बढ़ने के साथ ही पुरुष व महिलाएँ आजकल उच्च रक्तचाप, मधुमेह व थायरॉयड जैसी बीमारियों की चपेट में आ रही हैं। ये रोग प्रजनन के रास्ते में बड़ी बाधा बन रहे हैं। अब तो अधिक उम्र में शादी से महिलाओं की बच्चेदानी में ट्यूमर भी होने लगे हैं।
एबनॉर्मल प्रेग्नेंसी का खतरा
डॉ. रेणु मिश्रा के अनुसार, यदि महिला 40 वर्ष की उम्र के बाद गर्भधारण करती हैं तो उसे व उसके बच्चे को बहुत सी कठिनाईयों का खतरा होता है। 30 से 35 साल के बाद एबनॉर्मल प्रेग्नेंसी के चांसेज भी बढ़ जाते हैं। अधिक उम्र होने पर प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का ब्लड प्रेशर बढ़ना, डायबिटिज, शुगर होने का खतरा होता है। अधिक उम्र में प्रेग्नेंट होने से नॉर्मल डिलीवरी के चांसेज बहुत कम हो जाते हैं और ऑपरेशन के चांसेस बढ़ जाते हैं।
आईवीएफ के लिए भी उम्र बहुत मायने रखती है
डॉ. रेणु मिश्रा के अनुसार, आईवीएफ तकनीक से बच्चा हासिल करने के लिए आने वालों में देर से शादी करने वाले दंपत्ति ही अधिक पहुँच रहे हैं। लेकिन मैं कहना चाहती हूं कि आईवीएफ के लिए भी सही उम्र का होना बेहद जरूरी है। बच्चे के जन्म के लिए स्वस्थ्य शुक्राणु व स्वस्थ्य अंडाणु के साथ स्वस्थ्य गर्भ का होना बेहद जरूरी है। सरोगेसी की सहायता हम तभी लेते हैं जब देखते हैं कि मां बनने आई महिला के गर्भ की दीवार बेहद कमजोर है या उसके गर्भाशय में कोई और समस्या है। इसलिए सामान्य या आईवीएफ के जरिए बच्चा हासिल करने के लिए हर हाल में उम्र की सीमा को मानना चाहिए। आखिर प्रकृति ने हर हर चीज की एक स्वाभाविक उम्र तय कर रखी है।
नोट: डॉ. रेणु मिश्रा: वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रेणु मिश्रा एम्स से सेवानिवृत्त होने के उपरांत वर्तमान में दिल्ली स्थित एक निजी अस्पताल में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में वरिष्ठ कंसल्टेंट हैं।यह लेख डॉ रेणु मिश्रा से की गई बातचीत के आधार पर लिखी गई है।
Source: aadhiabadi
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