कई गुत्थियों को आसानी से सुलझाने वाले विज्ञान के लिए हृयुमटाइड अर्थराईटिस, थायराइड, सिस्टेमिक ल्यूपस एरीथेमॅटोसस जैसी कई आटोइम्यून बीमारियां आज भी चुनौती बन कर खड़ी हैं। ऐसे में आयुर्वेद का मार्गदर्शन बेहद कीमती साबित हो सकता है।
क्यों होती है आटोइम्यून बीमारियां?

आयुर्वेद ने रोगप्रतिरोधक शक्ति को अपनी दृष्टि से समझने की कोशिश की है। दोष, धात्वाग्नि, ओज, धातुओं का सौष्ठव आदि विविध घटक इम्यूनिटी (रोगप्रतिरोधक शक्ति) को बनाते हैं। लेकिन अयोग्य जीवनशैली, आहार, विरुध्दान्न, मानसिक तनाव, अनुवांशिकता ऐसे अनेक कारणों से इन घटकों का कार्य बिगड़ने लगता है। अयोग्य आहार आदि कारणों से जठराग्नि तथा धात्वग्नि में आई हुई दुर्बलता आम को जन्म देती है। ये आम विविध धातुओं में जाकर उन बीमारियों को पैदा करता है, जिन्हें आजकल ऑटोइम्यून बीमारियां माना जाता है। अतः उनसे बचने के लिए आहार आदि कारणों पर ध्यान देना चाहिए।
क्या खाएं इन बीमारियों में?
ऑटोइम्यून बीमारियों से बचने के लिए या उनको काबू में रखने के लिए सबसे पहले तो पाचन प्रणाली और पाचकाग्नि को मजबूत रखना चाहिए। संतुलित जठराग्नि व धात्वाग्नि भोजन के प्रत्येक तत्वों को पचाने की क्षमता रखती है। इससे ऑटोइम्यून बीमारियां उत्पन्न होने की संभावना काफी कम होती है।
हल्दी, धनिया, अजवाइन, लौंग, सौंठ, जीरा, इलायची, तेजपत्ता जैसे द्रव्य अग्नि को बल प्रदान करते हैं। आहार में उनके इस्तेमाल से पाचन प्रणाली का कार्य सुधर जाता है। इन सबका इस्तेमाल खाने में उचित मात्रा में करना आटोइम्यून व्याधियों को दूर रखने में सक्षम है।
किन चीजों का क्या करना चाहिए?
इसके विपरीत अग्नि को दुर्बल बनाने वाली चीजें आम बना कर ऑटोइम्यून विकारों की संभावना बढ़ती है। दही, पनीर, लस्सी, भैंस का दूध, क्रीम सहित दूध, आईसक्रीम, मांस, मछली, अंडे, पिज्जा, ब्रेड, चॉकलेट जैसे पदार्थ भारी होने की वजह से अग्नि को दुर्बल बनाती है। इससे ऑटोइम्यून व्याधियां की संभावना बढ़ती है। मैदा, साबूदाना, हाइड्रोजिनेटिड घी एवं मिठाई भी पचने में भारी और आम बनाने में अग्रेसर होते हैं। इनसे भी सावधान रहना जरुरी है।

कई अनाज एवं दालों और उनके छिलकों में ऐसे पदार्थ होते हैं, जिनको हजम करना हमारी अग्नि के लिए मुश्किल होता है। अगर ऐसे द्रव्यों का सेवन बार-बार किया जाए तो न पचे हुए तत्व ऑटोइम्यूनिटी को जन्म दे सकते हैं। इसलिए अरहर, उड़द, चना, छोले, राजमा, सोयाबीन, लोबिया, मोठ, गेहूं, मक्का जैसे अनाजों व दालों का सेवन सावधानी पूर्वक करना चाहिए और वह अच्छी तरह से हजम हो रहे हैं, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
शीतकाल में शीतल द्रव्य सेवन करना, उष्णकाल में उष्ण द्रव्य अधिक सेवन करना (कालविरुद्ध) उष्ण और शीतल द्रव्य एक साथ सेवन करना (वीर्यविरुद्ध) आदि चीजों आयुर्वेद में विरुद्धान्न कहलाती है। इनका सेवन न करना ही लाभदायी होता है।
वृद्धावस्था में स्वस्थ रहने का राज है, इसकी शुरुआत युवावस्था में ही कर देना। जीवन के पहली पारी में स्वस्थ जीवनशैली और आाहार की आदत डाल लेना दूसरी पारी में साथ निभाता है। इसलिए खुराक के प्रति बहुत सावधान रहने की जरुरत है, तभी लंबे स्वस्थ जीवन की पारी खेली जा सकती है। आखिरकार अच्छा जीवन अपने आप में मायने रखता है और इसे वृद्धावस्था में अच्छी सेहत से ही देखा जाता है।
क्या खाना लाभदायी होगा?
ऑ टोइम्यून व्याधियों से पीड़ित मरीजों में एंटीऑक्सिडेंट एक्टिविटी की न्यूनता कई बार देखी जाती है। इसलिए एंटीऑक्सिडेंट्स बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन ऐसी बीमारियों में जरुरी माना जाता है। ज्यादातर सब्जियां एवं फल एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं। इनका नियमित सेवन ऐसी बीमारियों में फायदेमंद साबित होता है। पेठा, बथुआ, गाजर, टिंडा, तोरई, गोभी, परवल, शलगम, भिंडी, पत्तागोभी, चुकंदर आदि सब्जियाँ तथा सेब, अनार, पपीता, लीची, आडू, नाशपाती इत्यादि जैसे फल इसमें लाभदायी माने जाते हैं।

ओज पर ध्यान दें
आयुर्वेद में इम्युनिटी (रोगप्रतिरोधक शक्ति) का ओजस के साथ करीबी रिश्ता माना जाता है। इम्युनिटी बिगड़ने की परिस्थिति में ओजस पर बल देना जरुरी समझा जाता है। इसलिए आहार भी ओजस को पोषित करने वाला हो ऐसा माना जाता है। बादाम, काजू, किशमिश, मुनक्का, चिलगोज अखरोट, गाय का दूध एवं घी आदि द्रव्य ओज बढ़ाते हैं। इसलिए उचित मात्रा में उनका सेवन लाभदायी होता है। तंबाकू, शराब, गुटखा एवं अन्य नशीले पदार्थ ओजनाशक होने के कारण त्याज्य माने जाते हैं। बलवान ओज और आम से मुक्त शरीर ऑटोइम्यून व्याधियों से मुक्त रहता है।
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