देश में गर्भस्थ महिलाओं और शिशुओं को जन्म देने के दौरान होने वाली उनकी मौत के आंकड़े चौंकाने वाले साबित हो रहे हैं। नेशनल सेंपल सर्वे आर्गेनाईजेशन(एनएसएसओ) की हालिया सर्वे रिपोर्ट में संबंधित आंकड़े माताओं के स्वास्थ्य के प्रति गहरी चिंता पैदा कर रही है।
विश्व भर में होने वाली कुल मेटरनल डेथ (प्रषूता मृत्यु) में से भारत के इस मृत्यु दर की भागीदारी 17 प्रतिशत तक जा पहुंची है। प्रति वर्ष गर्भस्थ महिलाएं और शिशु को जन्म देने के दौरान 50 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक गर्भस्थ और शिशु जन्म के दौरान होने वाली मौत देश में प्रतिदिन के हिसाब से 137 दर्ज की गई है।
सहस्राब्दि विकास के लक्ष्य से भटका देश
देश अपने प्रषूता मृत्यु दर को नियंत्रित करने के निर्धारित लक्ष्य से भटकता हुआ दिख रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रसूति मृत्यु के आंकड़े प्रति एक लाख लाइव बर्थ के मुकाबले 109 तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन यह संख्या 140 तक पहुंच गई।
सुरक्षित प्रसूति प्रक्रिया में भी सामने आया पेंच
यहां बता दें कि गर्भस्थ महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता को लेकर सरकारी स्तर पर प्रतिबद्धता प्रदर्शित की जाती रही है, लेकिन इस मसले पर बरती गई सावधानियों के प्रति और भी गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। मौजूदा रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में होने वाले प्रसूति में से सभी अस्पतालों में नहीं हुए।
इनमें से काफी संख्या में शिशुओं का जन्म घरों में ही असुरक्षित माहौल में हुआ। बताया गया है कि शहरी क्षेत्र में जहां 11 प्रतिशत असुरक्षित प्रसूति कराई गई। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में असुरक्षित प्रसूति का दर 20 प्रतिशत रहा है। गर्भवती महिलाओं और शिशु को जन्म देने के बाद उनकी चिकित्सकीय निगरानी को लेकर देशभर में जागरूता अभियानों को चलाया जा रहा है।
अस्पतालों और सरकारी नर्सिंग होम, मातृ-शिशु केंद्र और कर्मचारियों को इसके लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित करने के दावे किए गए हैं। विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस कड़ी को मजबूत करने की पहल पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन यह जानकार हैरानी होगी कि आज भी काफी संख्या में गर्भवती और प्रसूति महिलाओं को उचित चिकित्सकीय देखभाल नहीं मिल पा रही है। रिपोर्ट में किए गए खुलासे इस बात की तस्दीक करते हैं।
Source: navodayatimes
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